नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शहरों में हो रहे अवैध निर्माणों पर चिंता जताते हुए कहा है कि सरकारी महकमों द्वारा इन्हें नियमित करना "खेदजनक" है। जस्टिस जी एस सिंघवी और एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने मुंबई की एक सहकारी आवास समिति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि शहरों के नियोजित विकास के लिए नगर निगमों के कानून लागू करने में सरकारी महकमें "बुरी तरह" विफल रहे हैं।
जजों ने कहा, "पिछले पांच दशक में सभी छोटे ओर बड़े शहरों में नियोजित विकास से संबंधित नगर निगम के कानूनों का धड़ल्ले से उल्लंघन किया है और जिन व्यक्तियों को मास्टर प्लान को लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी गई वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में बुरी तरह विफल हुए हैं।"
न्यायाधीशों ने कहा, "यह बहुत ही खेदजनक है कि क्षेत्र की पारिस्थितिकी और पर्यावरण संरक्षण तथा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के इरादे से यह न्यायालय बार बार संबंधित प्राधिकारियों को मनमाने तरीके से अवैध निर्माणों को नियमित करने के खिलाफ आगाह करता रहा है लेकिन इसके बावजूद यह सब हो रहा है।"
न्यायालय ने स्वीकृत नक्शे का उल्लंघन करके बनाई गई मंजिलों को नियमित करने के लिए ईशा एकता अपार्टमेन्ट सहकारी आवास समिति की याचिका खारिज करते हुए इसकी अनुमति देने से इनकार करने के निर्णय के लिए मुंबई नगर निगम की तारीफ भी की। जजों ने कहा कि स्वीकृति नक्शे का उल्लंघन करके निर्मित मंजिलों को नियमित करने का अनुरोध अस्वीकार करके डिप्टी चीफ इंजीनियर और अपीली प्राधिकरण ने देश की व्यावसायिक राजधानी का नियोजित विकास सुनिश्चित करने के लिए दृढ़निश्चय का परिचय दिया है।
Source : Rajasthan Patrika
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